मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम की असीम अनुकम्पा से सेंदुली बेंदुली बड़गो स्थित सिद्धि विनायक लॉन में चल रही संगीतमयी श्रीराम कथा के सप्तम दिवस काशीविश्वनाथ नगरी से पधारे अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वक्ता श्रीविद्या सिद्ध संत ज्योतिष सम्राट पूज्य श्री राघव ऋषि जी ने दिव्य रहस्य उद्घाटित करते हुए कहा कि मानव शरीर की सार्थकता तभी सफल है कि जब अपने साथ साथ दूसरों के कल्याण की प्रवृत्ति हो योगी होना कठिन नहीं है जितना उपयोगी होना जिस प्रकार प्रभु के अयोध्या से जाने के बाद भी पुर वासियों का मन प्रभु की याद में ही बीतता था। तन कही भी रहे किन्तु मन परमात्मा में लगा रहे यही मानव तन की सार्थकता है।
कथा प्रसंग से को श्रवण कराते हुए पूज्यश्री ने प्रभु चरणों में अथाह प्रेम रखने वाले श्रीरामजी के अनुज भरतजी के अनुराग का बखान किया कि हर भाई का भाई से कैसा प्रेम होना चाहिए यह भरत जी के प्रेम से सीख लेना चाहिए।
भरत जैसे धीर, वीर, साहसी के साथ त्याग तपस्या की खान हैं। जिसे अपने प्राणाधार का विछोह सहना पड़ रहा हो जैसे सुखी मछली को जल से निकाल दिया जाए ऐसी ही दशा भरतजी की हुई। जिन्हें किसी तरह का कुछ भी पाने का लालच नहीं है एकमात्र भइया राम के मुखकमल चरणकमल के दर्शन की अभिलाषा है। जीव का परमात्मा से बिछोह अति दुखदाई जिसकी वेदना कह पाना सह पाना अत्यन्त कठिन है। सम्पूर्ण विश्व की संपदा उस वियोग की पूर्ति नहीं कर सकती। प्रभु से मिलन होते ही समस्त वियोग सुयोग में परिवर्तित हो जाते हैं। प्रभु के चरण पादुकाओं का संबल ही जिनके जीने का सहारा मिला।
"राम भक्त ले चला रे राम की निशानी" बड़ा ही मार्मिक भजन सौरभ ऋषि ने अपार जनसमूह को सुना भावविभोर किया जिससे आंखे अश्रुपूरित हो उठीं ।
कथा के दैनिक यजमान रामशंकर त्रिपाठी, पंकज गुप्ता एवं दिवाकर पाण्डेय ने सपरिवार व्यासपीठ एवं पोथी पूजन किया। सर्वश्री रामाधार वर्मा, कन्हैयालाल अग्रवाल, मुन्नालाल गुप्ता, सतीश सिंह, बिष्णु नन्द द्विवेदी, वीरेन्द्र पाठक, सौरभ रूंगटा, विकास गुप्ता उदय प्रताप सिंह मनोज वर्मा, भरत गुप्ता, ओमप्रकाश मौर्य, रुद्र प्रताप त्रिपाठी, अतुल तिवारी, राजीव त्रिपाठी, विनय पाण्डेय, धर्मेंद्र गुप्ता आदि भक्तसमूह ने भावपूर्वक आरती कर पुण्यलाभ प्राप्त किया।
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