परमपिता परमेश्वर भगवान सदाशिव के पावन चरित्र की मंगलमय संगीतमयी श्रीशिवमहापुराण कथा के विश्राम दिवस काशी से पधारे अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वक्ता श्रीविद्या सिद्ध सन्त ज्योतिष सम्राट पूज्य राघव ऋषि जी ने ऋषि सेवा समिति, गोरखपुर के तत्वाधान में आयोजित आजाद चौक समीपस्थ दुर्गा चौक स्थित मेहंदी लॉन में भक्त श्रद्धालुओं को विभिन्न शिव चरित्रों की विवेचना करते हुए भगवान के नीलकंठ स्वरूप को सुनाते हुए कहा कि समुद्र मंथन से निकले विष से सभी देवों के आग्रह से विषपान किया उस विष हलाहल पीने से भगवान शिव का गला नीला पड़ गया तभी से भगवान शिव नीलकंठ कहलाए। भगवान शिव हर पल भक्तों का कल्याण करने वाले हैं।
शिवजी के रूप अनेक है जो सृष्टि के सृजन, संचालन, संतुलन के लिए एक और रूप से भक्तों को अवतार लिया। ब्रह्मा के सृष्टि निर्माण में यह आभास हुआ कि यह स्थिर नहीं होगा तब ब्रह्मा आदि समस्त देवों ने भगवान शिव से निवेदन किया जिसके फलस्वरूप भगवान शिव ने आधा पुरुष, आधा स्त्री के रूप को एक रूप में समहित किया जो अर्धनारीश्वर महादेव के रूप में अवतरित हुए जिसमें शिव व शक्ति का रूप जो सृष्टि के संचालन की व्यवस्था को बनाया।
मृत्युंजय महादेव के रूप में भगवान शिव की महिमा बताते हुए पूज्य ऋषि जी ने कहा कि मृत्यु को भी जो काल के गाल से निकालने वाला स्वरूप मृत्युंजय महादेव के रूप में लिया।
परम पावनी गंगा की निर्मल धारा और शिवमहिमा पर ऋषिजी के एकमात्र सुपुत्र सौरभ ऋषि द्वारा "शंकर तेरी जटा से" भजन की प्रस्तुति दी गयी।
समिति के से सर्वश्री रामाधार वर्मा, बनवारी लाल निगम, सतीश सिंह, सौरभ रुंगटा, कन्हैयालाल अग्रवाल, मुन्नालाल गुप्ता, बिष्णु नन्द द्विवेदी, रामशंकर त्रिपाठी, वीरेंद्र पाठक, यूपीएन सिंह, विकास गुप्ता, रुद्र प्रताप त्रिपाठी, अतुल तिवारी, मनोज वर्मा, भरत गुप्ता, विनय पाण्डेय, राजीव त्रिपाठी, मनोज गुप्ता, ओमप्रकाश मौर्य, रमेश राज, ओंकार कसौधन, धर्मेंद्र गुप्ता, विनोद बरनवाल आदि समस्त श्रद्धालु भक्तों ने दिव्य विश्राम आरती संपन्न कर पुण्यलाभ प्राप्त किया।
कार्यक्रम अधिशासी श्री वीरेन्द्र पाठक ने उपस्थित समस्त श्रोतागणों, कथा सहयोगियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। साथ ही पूज्य ऋषिजी सहित सभी संगीतज्ञों, भूदेवों का समिति द्वारा स्वागत सम्मान एवं पूर्णाहुति द्वारा विधिवत कथा विश्राम उपरान्त भंडारे का भी आयोजन हुआ।
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